विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक और आध्यात्मिक समागम माँ गंगा ,यमुना और अद्रश्य सरस्वती की त्रिवेणी में 13 जनवरी 2025 से प्रयागराज की धरती पर आरम्भ होने जा रहा है ,12 महाकुंभों के बाद 144 वर्ष बाद महाकुम्भ का यह अद्भुत संयोग आया है जब अमृतमयी संगम में होगा अमृत स्नान ….
कुम्भ मेला सदियों से अनवरत चला आ रहा है यह उस संस्कृति यात्रा का पड़ाव है जिसमें नदियां हैं , कथाएं हैं , अनुष्ठान हैं , संस्कार है , सरोकार है , मिथक है , जिनके बलबूते हम अपनी परम्परों को बखूबी निभाते चले आये हैं यही कारण है कि यूनेस्कों ने 2017 में कुम्भ मेला को मानवता की अमृत , सांस्कृतिक विरासत की सूची में शामिल किया है
क्या है कुम्भ मेला :
कुंभ मेला भारत में आयोजित किया जाने वाला हिन्दू समुदाय का सबसे बड़ा मेला है यहाँ पर हिन्दू समुदाय के सभी लोगों के साथ साथ परम पूज्य साधु संत बड़ी संख्या में इकट्ठा होते है और पवित्र नदी में स्नान करते हैं यह मेला हर चौथे वर्ष चार अलग-अलग स्थानों पर लगता है। यहां न केवल भारत के हिन्दू बल्कि यहाँ आने वाले विदेशी पर्यटक भी ,इस तीर्थस्थान के मेले में शामिल होते है..
यह मेला चार विभिन्न स्थानों पर मनाया जाता है – इलाहाबाद यानी प्रयागराज में गंगा ,यमुना और सरस्वती नदी का जहाँ तीनों संगम होता है। हरिद्वार में गंगा नदी के किनारे , नासिक में गोदावरी नदी के किनारे, , उज्जैन में क्षिप्रा (शिप्रा) नदी के किनारे,
मेले का इतिहास और कथा:
कुंभ मेला का आयोजन क्यों शुरू हुआ , इसके पीछे एक पौराणिक कथा है जो कुछ इस तरह है.
ऋषि दुर्वासा के अभिशाप के कारण एक बार देवताओं ने अपनी ताकत खो दी। अपनी ताकत हासिल करने के लिए, उन्होंने भगवान शिव और भगवान ब्रह्मा से संपर्क किया, जिन्होंने विष्णु भगवान की प्रार्थना करने की सलाह दी, तब भगवान विष्णु ने क्षीरसागर का मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी। भगवान विष्णु के ऐसा कहने पर संपूर्ण देवता दैत्यों के साथ संधि करके अमृत निकालने के यत्न में लग गए।
सबसे पहले मंथन में विष उत्पन्न हुआ जो कि भगवान् शिव द्वारा ग्रहण किया गया। जैसे ही मंथन से अमृत दिखाई पड़ा,तो देवता, शैतानों के गलत इरादे समझ गए, देवताओं के इशारे पर इंद्र पुत्र अमृत-कलश को लेकर आकाश में उड़ गए ।
तब राक्षसों और देवताओं में 12 दिनों और 12 रातों तक युद्द होता रहा। इस तरह लड़ते-लड़ते अमृत पात्र से अमृत चार अलग-अलग स्थानों पर गिर गया। इलाहाबाद, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन।
तब से, यह माना गया है कि इन स्थानों पर रहस्यमय शक्तियां हैं, और इसलिए इन स्थानों पर कुंभ मेला लगता है। जैसा कि हम कह सकते है देवताओं के 12 दिन, मनुष्यों के 12 साल के बराबर हैं, इसलिए इन पवित्र स्थानों पर प्रत्येक 12 वर्षों के बाद कुंभ मेला लगता है।कहा जाता है कि महाकुंभ मेले में हिंदुओं को अपने जीवन काल में एकबार स्नान अवश्य करना चाहिए। समय-समय पर, महाकुंभ मेला हर 144 वर्षों में या 12 पूर्ण कुंभ मेले के बाद आता है।
महाकुंभ में लाखों श्रद्धालु शामिल होते है, जो पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं। एक कथा के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने एक बार कहा था कि गंगा के पवित्र जल में स्नान या डुबकी लेने से मनुष्य अपने पापों से मुक्त हो जाता है।
सबसे पहला कुम्भ मेला कब और कहां लगा था ?
कुंभ मेले का आरंभ पौराणिक कथाओं के अनुसार सतयुग में अमृत मंथन की घटना से हुआ माना जाता है. वैसे कुंभ मेले के आयोजन का ऐतिहासिक प्रमाण 7वीं शताब्दी में हर्षवर्धन के शासनकाल से मिलता है, कुंभ मेले का स्पष्ट उल्लेख और व्यवस्थित आयोजन का सबसे पुराना प्रमाण प्रयागराज (इलाहाबाद) से ही जुड़ा है. हरिद्वार और अन्य स्थानों पर इसके आयोजन का क्रम धीरे-धीरे शुरू हुआ.
इस बार का महाकुम्भ क्यों है इतनी चर्चा में
इस बार के महाकुम्भ में उत्तर प्रदेश सरकार कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है साथ ही इस बार प्रयागराज में कई वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने की तैयारियां भी की जा रहे हैं , इस बार यहां देशी और विदेशी कई करोड़ श्रद्धालुओ के आने का अनुमान है जिनकी सभी सुख सुविधाओं का विशेष ध्यान रखा जायेगा
कब कब होंगे सही स्नान :
पौष माह की पूर्णिमा तिथि से महाकुंभ मेले की शुरुआत होती है. इस बार 13 जनवरी 2025 को पूर्णिमा तिथि पड़ रही है, इसी दिन लोहड़ी और शाकंभरी जयंती भी मनाई जाएगी. दूसरा शाही स्नान मकर संक्रांति के दिन होगा जो 14 जनवरी है और इसके बाद तीसरे स्नान की तिथि 29 जनवरी को मौनी अमावस्या के दिन पड़ेगी. जनवरी के महीने में ये तीनो शाही स्नान महत्वपूर्ण होंगे इसके अलावा, फरवरी के महीने में भी शाही स्नान की 3 तिथियां पड़ने वाली हैं.