यह पर्व सूर्य की दिशा को निर्धारित करता है यानि मकर संक्रांति से सूर्य की दिशा उत्तरायण यानि उत्तर की ओर होने लगती है
अथार्त इस पर्व से दिन थोड़ा थोड़ा बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं सूर्य की उत्तर दिशा यानि उत्तरायण को कई लोग शुभ और पवित्र मानते हैं,
मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान करके गंगा तट पर दान पुण्य करने का विशेष लाभ माना गया है , मान्यता है इस दिन दिया गया दान सौ गुना बढ़ क्र पुनः मिलता है ,मकर संक्रांति वाले दिन प्रयागराज या गंगा स्नान को महास्नान माना गया है
इस पर्व की पौराणिक और कई धार्मिक मान्यताये हैं जैसे कहा जाता है कि भगवान भास्कर इस दिन अपने पुत्र शनि देव से मिलने स्वयं उनके घर गए थे दूसरा यह कि शनि देव मकर राशि के स्वामि हैं इस लिए भी इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है तीसरा यह कि इसी दिन गंगा जी महर्षि भागीरथी के पीछे पीछे चल कर कपिल मनु के आश्रम से होते हुए सीधे समुद्र की असीमित गहराईयों से जाकर मिल गयी थी
इसके आलावा खिचड़ी से सम्बंधित बाबा गोरखनाथ की भी एक प्राचीन कथा फेमस है : कहा जाता है कि जब खिलजी ने आक्रमण किया था, उस समय चारों तरफ हाहाकार मच गया था. युद्ध की वजह से नाथ योगियों को भोजन बनाने का भी समय नहीं मिल पाता था. लगातार भोजन की कमी से वे कमजोर होते जा रहे थे. नाथ योगियों की उस दशा को बाबा गोरखनाथ नहीं देख सके और उन्होंने लोगों से दाल चावल और सब्जी को एक साथ मिलाकर पकाने की सलाह दी. बाबा गोरखनाथ की यह सलाह सभी नाथ योगियों के बड़े काम आई. दाल चावल और सब्जी एक साथ मिलाने से बेहद कम समय में आसानी से पक गया और इससे. इसके बाद बाबा गोरखनाथ ने ही इस पकवान को खिचड़ी का नाम दिया. खिलजी से युद्ध समाप्त होने के बाद बाबा गोरखनाथ और योगियों ने मकर संक्रांति के दिन उत्सव मनाया और उस दिन लोगों को खिचड़ी बाटी. उसी दिन से मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी बाटने और बनाने की प्रथा शुरू हो गई.
इस दिन खिचड़ी क्यों बनाई जाती है:
मकर संक्रांति पर खिचड़ी बनाने के पीछे कई आध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारण बताये जाते हैं कहा जाता है इस दिन खिचड़ी खाने से घर में सुख और शांति के साथ साथ समृद्धि भी आती है इस दिन कई प्रकार से खिचड़ी बनाई जा सकती है जैसे कुछ लोग दाल चावल की सादी खिचड़ी बनाते है तो कुछ लोग इसको सब्जियों के साथ मिलाकर बनाते हैं